प्रथम अध्याय
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कृष्ण जी की कहानी हमारी अपनी जुबानी
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कृष्ण अमृतवाणी,krishna story for kids
मथुरा में चारों तरफ खुशी का माहौल था और हो भी क्यों ना खुशी की तो बात ही थी ।खुशी का माहौल किस वजह से हो सकता है हां आज उग्रसेन की पुत्री देवकी का विवाह वासुदेव के साथ होने जा रहा था मथुरा वासी बहुत ही प्रसन्न और आनंदित थे उन्हें बहुत ही खुशी महसूस हो रही थी। जैसे-तैसे शादी में सारे कार्यक्रम को पूरा किया गया उसके बाद कंस जो की देवकी का भाई था और उग्रसेन का पुत्र था उसने निर्णय लिया कि देवकी को वह स्वयं उसके ससुराल तक छोड़कर आएगा। अब देवकी और वासुदेव रथ में सवार हो गए और कंस के साथ जाने लगे, यह सब देखकर मथुरा वासी बहुत ही खुश थे जगह-जगह पर मथुरा वासी देवकी और वासुदेव की विदाई को देखने के लिए दौड़े चले आ रहे थे कि अचानक आगे रथ बढ़ ही रहा था कि बादलों का घूमडना और गर्जना शुरू हो गया अचानक काले बादल छा गए और उसमें से एक भविष्यवाणी हुई भविष्यवाणी थी कि "हे मूर्ख कंस तुम जिस देवकी की विदाई कर रहे हो उसी का आठवां पुत्र तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा"। इतना कहकर भविष्यवाणी का समापन हो गया कंस क्रोध से बहुत ही अधिक विचलित हो गया और उसने देवकी और वासुदेव को कारागार की ओर ले गया इतने में कंस ने देवकी को मारने की कोशिश की तभी वासुदेव बोले हैं कंस तुम्हें देवकी से कोई खतरा नहीं है और रही बात उसकी संतान की तो जैसे ही देवकी को कोई संतान होगी तो मैं उसे तुरंत तुम्हारे पास ला कर दे दूंगा तुम देवकी को मत मारो मैं तुमसे वादा करता हूं। इतना वादा करने पर कंस ने देवकी को छोड़ दिया और कहा ठीक है और उन्हें कारागार में बंद करा दिया गया। इधर बहुत ही बेचैन होकर कंस रास्ता देख ही रहा था कि आखिर वह दिन आ ही गया जब देवकी को पहले पुत्र की प्राप्ति हुई जैसे ही देवकी का पहला पुत्र हुआ वासुदेव ने अपने वचन अनुसार उस पुत्र को ले जाकर कंस के पास दे दिया कंस ने कहा मुझे इस पुत्र से कोई खतरा नहीं है उसके आठवें पुत्र की मुझे जरूरत है इसलिए आप इसे ले जा सकते हो वासुदेव पुत्र को लेकर लौटने लगे तभी अचानक से नारद मुनि ने यह देखा और आकर बोले अरे! नारायण-नारायण क्या कर रहे हो पहला पुत्र तुम छोड़े जा रहे हो, हो सकता है वह सब मिलकर तुम पर आक्रमण करें इतनी बात सुनते ही कंस की बुद्धि फिर गई और उसने वहां पहुंच कर कारागार में ही एक पत्थर पर पटक कर उस पुत्र की हत्या कर दी यह दृश्य देखकर देवकी डर गई और बहुत ही भयभीत हो गई लेकिन जो ईश्वर की मर्जी है वह तो होकर ही रहेगी।
उनको भयभीत देखकर कंस हंसता हुआ वहां से बाहर निकल गया और जाकर अपने दोस्तों के साथ जश्न मनाने लगा और उसने धीरे से अपने पिता उग्रसेन को भी बंदी बना लिया और कारागार में डाल दिया और वह अपने दुष्ट और दुराचारी मित्रों के साथ मिलकर उस राज्य में शासन करने लगा और अपनी मनमानियां करने लग एक-एक करके उसने सातों पुत्र को मार डाला।
कहां जाता है दुष्टता का अंत एक ना एक दिन अवश्य होता है दुराचारी की मृत्यु ऐसी होती है कि उसे जमाना याद रखता है और ऐसा ही होने वाला था अचानक वह समय आने लगा कि देवकी के आठवें पुत्र को जन्म देने की घड़ियां नजदीक ही थी इस बार देवकी के चेहरे में इतना तेज था कि उसे देखकर कोई भी यह समझ जाता कि इस बार देवकी के गर्भ में जो भी बच्चा है वह ईश्वर का ही रूप है।
आज वही दिन आ गया देवकी के गर्भ से अचानक एक शक्ति ने जन्म लिया और वह ऊपर हवा में आकर अपने साक्षात रुप में आए वे थे विष्णु जी और विष्णु जी ने कहा हे मेरी माता में यहाँ सुरक्षित हूं लेकिन मैं ज्यादा देर तक सुरक्षित नहीं रह पाऊंगा इसलिए आप मेरी बात माने और मुझे दूसरी जगह पहुंचा कर मुझे सुरक्षित कर दीजिए। वासुदेव जी से विष्णु जी कहते हैं
हे पिताजी मुझे आपके मित्र नंद के यहां पर छोड़ दीजिए उनके यहां पर यशोदा जी को एक पुत्री हुई है उस पुत्री को यहां ले आइए इतना कहकर वह शक्ति वापस बच्चे के अंदर समा गई।वसुदेव और देवकी यह सुनकर शांत और बहुत ही प्रसन्न से थे लेकिन अभी बहुत बड़ी समस्या थी नंद के यहां जाने में उन्हे कारागार से बाहर निकलना होगा। वासुदेव ने कृष्ण भगवान जी को गोद में उठाया और उनको गोद में उठाते ही वासुदेव और देवकी की सारी बेड़ियां खुल गई इस तरह सारे सैनिक अपने आप ही बेहोश हो गए और सारे द्वार अपने आप ही खुलते चले गए वासुदेव ने कृष्ण जी को एक टोकरी में रखकर अपने सर पर रख लिया और वह निकल पड़े गोकुल की ओर,अब गोकुल की ओर जाते वक्त बीच में यमुना नदी पर इतनी तेज तूफानी बारिश और बाढ़ आई हुई थी कि वासुदेव का वहां से निकलना नामुमकिन सा लग रहा था लेकिन वासुदेव को अपना काम पूर्ण करना था। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की हे! ईश्वर अब मुझे आप ही कोई रास्ता दिखाइए तभी यमुना नदी का जो वहाव है वह कम हो गया अब वासुदेव उसमें से आगे बढ़ने लगे और नदी के बीचों-बीच कमर कमर पानी, धीरे-धीरे वह बढ़ते जा रहा था तभी वासुदेव के गर्दन-गर्दन तक पानी आने लगा और अब उनके नाक तक भी पानी आ पहुंचा जिससे सांस लेने में कठिनाई होने लगी अब भी वह चलते जा रहे हैं चलते जा रहे हैं पीछे से शेषनाग अपनी छत्रछाया करते हुए कृष्ण भगवान को आनंदित कर रहे हैं तभी कृष्ण भगवान जी का एक अंगूठा यमुना नदी को छू जाता है और सारी यमुना नदी का भार और वहाव सम हो जाता है अब जैसे तैसे वासुदेव अपने पुत्र को नंद के यहां ले जाते हैं और कहते हैं कि यह बात किसी को नहीं पता चलनी चाहिए कि यह बच्चा तुम्हारे यहां पर आ गया है। और वह उनकी पुत्री को लेकर वापस देवकी के पास आ जाते हैं और सभी द्वार बंद हो जाते हैं और उनकी बेड़ियां वापस उन पर लग जाती हैं तभी सिपाही भी होश में आ जाते हैं और बच्चे की आवाज सुनकर तुरंत कंस के पास जाकर उन्हें सूचना देते हैं कि महाराज आठवी संतान ने जन्म ले लिया है।कंस सोया हुआ था और भयानक सपनों में खोया हुआ था उसकी मृत्यु का सपना उसे सता रहा था तभी वह सैनिकों की आवाज सुनकर उठा और दौड़ते हुए कारागार में आया और कारागार में आते ही वह उस संतान को उठाता है और वह संतान को पत्थर पर मारने के लिए पटकता है और वह सीधे हवा में जाकर दुर्गा का रूप धारण कर लेती है और कहती है कि तुमने बेगुनाह बच्चों को मौत के घाट उतारा है लेकिन पापी तेरा अंत तो निश्चित है और तेरा काल अब इस संसार में जन्म ले चुका है अब तो तू उसे कभी नहीं मार पाएगा इतना कहकर वह शक्ति अदृश्य हो जाती है और इधर कंस चिंतित हो जाता है कि अगर यह आठवीं संतान पुत्री है तो फिर मेरी मृत्यु पुत्र से कैसे? और वह बहुत परेशान होकर अपने राज्य में सभी को बुलाता है उसके सभी राक्षस मित्र आते हैं और उससे हालचाल पूछते हैं कि आखिर क्यों चिंतित हो? आगे दूसरे अध्याय में.......................….
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धन्यवाद!
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2 टिप्पणियाँ
Bahut achha likha hai aapne
जवाब देंहटाएंGood
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